
सीढ़ियाँ
मुगल बादशाह, मोहम्मद शाह के विधवा पत्नी कुदसिया बेगम का एक नपुंसक जावेद के साथ प्रेम प्रसंग, मुगल शासन के पतनशील चरण का सांकेतिक रूपायन है| किन्तु उस युग के अधः पतन का सच्चा प्रतिनिधि है ढिंढोरची सलीम, जो अनैतिकता की सीढ़ी - दर - सीढ़ी लांघता हुआ चढ़ना चाहता है| फिर भी नाटक का वास्तविक नायक मुग़ल साम्राज्य के अंतिम चरण में सामाजिक व्यवस्था के विघटन का वह युग है जिसमें भटके समाज के गिरते जीवन-मूल्यों के साथ ज़माना अपनी दोशीज़गी (कौमार्य) खो बैठता है| जहाँ वही सत्य है, जिसकी जय हो| सत्य पर असत्य, आस्था पर अनास्था, प्रेम पर वासना, करुणा पर हिंसा और विश्वास पर घृणा की जीत युग-धर्म है पतित समाज भ्रष्ट होलकर विलासी हुकम ऐसे बजरंग हैं जिनसे बनी है गुजरे वक्त की या तस्वीर समय के साथ यह रंग न धूल ना उड़े आज की तस्वीर में भी तो इन रंगों की झलक है कहीं ना कहीं दर्शकों को यह रंग दिखाई पड़े या ना पड़े वह इन्हें देखने की कोशिश भर करें बस इतना ही तो... सलीम उसे युग का प्रतिनिधि है आप भी यदि अपने चारों ओर नजर डालें तो सलीम दिखाई देंगे






FACTS: